भरत कुल 9
भाग- 9
सेठ जी की गृहस्थी अच्छे से चल रही है। इतना समय कब बीत गया पता ही नहीं चला। अब किरण 25 वर्ष का हो चुका है। यह उसका सौभाग्य है कि उसके बाबा दादी जीवित हैं ,और 70 का दशक पार कर रहे हैं। किरण अब अपने पैरों पर खड़ा है, उसका व्यापार दिन दूना रात चौगुना उन्नति कर रहा है। शोभा अपने पुत्र किरण से बहुत खुश रहती है, उसकी कामना है कि बाबा दादी को किरण का विवाह कर देना चाहिए, जिससे घर में सुंदर बहू आ सके ,और घर परिवार का भार संभाल सके।
कौशल, किरण से जब पैसों की गुहार करता किरण उसे नकार देता ।किरण के आगे कौशल की एक ना चलती। हार कर उसने शोभा के साथ ग्राम जाने का निर्णय किया। ग्राम जाने के लिए शोभ तैयारी करने में लगी थी। किरण को अपनी मां का ग्राम जाना ठीक नहीं लग रहा है। उसने माँ से कहा आप मत जाओ ,पापा को गांव जाने दो । वहां ग्राम में आप सुखी नहीं रह पाओगे, किंतु शोभा ने साफ इंकार कर दिया । उसने कहा, मैं तुम्हारे लिए अपने पति को अकेला नहीं छोड़ सकती। पति मेरा सर्वस्व है, उसका साथ देना मेरा धर्म है ,पिता पुत्र भाई मेरा साथ दें या ना दें, पति हमेशा मेरे साथ रहेंगे।अतः मैंने साथ जाने का निश्चय किया है, कौशल और शोभा एक दिन दादा दादी को छोड़कर ग्राम की ओर प्रस्थान कर गए ।
अब बाबा दादी के देखभाल का भार प्रज्ञा पर आ गया था। छोटी बहू ने घर बखूबी संभाल लिया , अपने परिवार के साथ -साथ उसने बाबा दादी की सेवा का भार जब अपने सर पर लिया तब अपने उत्तरदायित्व ज्ञान उन्हें अपने आप हो गया। किरण भी चाची के अंदर आए इस परिवर्तन से बहुत खुश था, उसे चाची के रूप में दूसरी मां मिल गई थी ,जो उसकी देखभाल बच्चों की तरह प्यार से करती ।एक दिन किरण उदास हो कालेज से घर लौटा ।चाची ने भोजन परोसते हुए उसे देखा ,उसे भान हुआ कि किरण उदास व अनमना है। उसका ध्यान कहीं और भटक रहा है। चाची ने प्यार से पूछा ?
बेटा! किरण आज क्या बात है स्वास्थ्य तो ठीक है?
किरण ने उत्तर दिया, हां चाची! बिल्कुल ठीक हूं।
चाची की अनुभवी नेत्रों से किरण की मनोदशा छिप नहीं सकी ।
चाची ने फिर पूछा ?किरण आज क्या बात है ?प्रातः तो बिल्कुल ठीक थे। किरण के मुख से अचानक निकला! चाची कुछ नहीं वह पूनम…
चाची से किरण कभी कुछ छुपा नहीं सका ,भोजन की मेज पर वह सभी बातें विस्तार से बताता ।
आज चाची ने पूछ लिया, हां ! किरण तुम कोई महिला मित्र के संबंध में कुछ कह रहे थे।
अचानक! चाची के सामने महिला मित्र का राज पास हो हो चुका था। अतः उसने पूनम के बारे में बताने में ही अपनी भलाई समझी। शायद चाची कोई हल निकाल सके ।
किरण ने कहा- चाची !पूनम हमारे कॉलेज की एक मित्र है वह बहुत सुंदर और व्यवहार कुशल है। मेरा बहुत ख्याल रखती है ।हम दोनों एक दूसरे को प्यार करते हैं। हम दोनों शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं ।पूनम मेरा पहला प्यार है, पहली पसंद है। किंतु- चाची ने उत्सुकता से पूछा, किंतु क्या!
किरण ने बताया चाची वह दूसरी जाति की है। क्या हमारे परिवार में बाबा दादी अंतर जाति विवाह स्वीकार करेंगे। चाची ने कुछ नहीं कहा और उठ कर चली गई। किरण चाची का मुंह ताकता रह गया उसे कोई उपाय भी नहीं सोच रहा था।
चाची ने एक दिन भोजन परोसते समय बाबा दादी के सम्मुख किरण की पसंद का जिक्र किया, और बाबा दादी का अंतर मन टटोलने का प्रयास किया।
जब चाची ने बाबा दादी को बताया- कि ,आने वाली बहू दूसरे जाति की है तो बाबा का भोजन करते करते हाथ रुक गया ,
उन्होंने पूछा -बहू !वह लड़की किस जात की है ,चाची ने जनजाति की बताया ।
बाबा किरण इस पसंद से बहुत नाराज हुए और इस बेमेल विवाह के विरुद्ध असंतोष फैल गया ।
अब दादी ने मोर्चा संभाला ,उन्होंने कहा सेठ जी! अब जमाने में बहुत बदलाव आ गया है। लड़का लड़की स्वेक्षा से अपना जीवन साथी चुनते हैं। लड़का होनहार है और उसने कुछ सोच समझकर निर्णय लिया होगा। आपकी नाराजगी का कोई मतलब नहीं । यदि आपने किरण का दिल तोड़ कर अपनी पसंद की लड़की से किरण का विवाह किया तो ,हो सकता किरण खाना पीना बंद कर दे। दुख में बीमार पड़ जाए, यदि शादी के बाद पति-पत्नी खुशी से जीवन नहीं बिताएंगे तो यह हमारे लिए अत्यंत कष्टप्रद होगा। हमें अपनी वृद्धावस्था का ध्यान रखकर निर्णय लेना चाहिए। किरण के सुख में अपना सुख है ,अतः किरण से वार्ता करके उचित निर्णय लिया जाए ।बाबा को सुशीला का सुझाव अच्छा लगा ,उन्होंने किरण से वार्ता के बारे में विस्तार से जानने की इच्छा व्यक्त की। सायं काल में जब तक चाची चाय नाश्ता तैयार कर रही थी, किरण को बाबा दादी के सम्मुख उपस्थित होने का आदेश हुआ। किरण संकोच व असमंजस में है, अब क्या होगा कि इस उहापोह में बाबा दादी के सामने उपस्थित हुआ। चरण स्पर्श कर दोनों का आशीर्वाद लिया और सिर झुका कर बैठ गया। बाबा ने उसे गौर से देखा और फिर कहा
,वह कन्या कौन है? उसके बारे में क्या जानते हो?
किरण ने बताया- बाबा! पूनम हमारी सहपाठी है । वह ऐमे सोशियोलॉजी से कर रही है ।उसका परिवार ग्राम में रहता है। वह दो भाइयों के बीच में अकेली बहन है। दोनों भाई छोटे हैं, और विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं पुनम ने सभी भाइयों की शिक्षा का प्रबंध किया है। माता पिता निर्धन है। वह सुंदर सुशील होने के साथ-साथ मेरा बहुत ख्याल रखती है।
बाबा ने समझाते हुए कहा, यह भी तो हो सकता है कि वह तुम्हें नहीं तुम्हारी संपत्ति को चाहती है। इसलिये तुम्हें रिझाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है।
किरण ने कहा- नहीं बाबा पूनम ऐसी लड़की नहीं है मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूं। उसे धन की लालच नहीं वह केवल मेरे साथ सुखी जीवन बिताना चाहती है। हम दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं ।
बाबा ने कहा- किंतु वह जनजाति की है ,हम सवर्ण हैं। जनजाति से संबंध नही कर सकते। नहीं तो समाज हमारी खिल्ली उड़ायेगा ,कि, बाबा दादी ने पोते की जिद के सम्मुख घुटने दिये। हमारा मान सम्मान मिट्टी में मिल जाएगा ।
किरण ने कहा -बाबा आज ना कोई सवर्ण है , ना कोई जनजाति का। सब कर्मों पर निर्भर है ।पूनम के संस्कार कुलीन है। वह शिक्षित है और अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझती है, वह आप सब का बहुत ख्याल रखेंगी और आप के मान-सम्मान पर कोई आँच नहीं आयेगी। बाबा ने दादी की तरफ देखा।
दादी बोल पड़ी, बेटा हमें उस लड़की के माता-पिता से मिलवाओ।उस कन्या से भी भेंट करवाओ तभी हम किसी निर्णय पर पहुंच सकेंगे ।किरण ने सहमति से सिर्फ हिलाया और कहा ठीक है दादी।