भरत कुल भाग2
भाग 2
सेठ भरत लाल की धर्म पत्नी का नाम सुशीला था। वह अत्यंत धार्मिक एवं कुशल ग्रहणी थी। वे सेठ जी का बहुत ख्याल रखती ,सेठ जी भी सुशीला का सम्मान करते थे।सेठ जी के दो बेटे थे।दोनों में कोई शिक्षित नहीं था, हालांकि, सेठ जी की इच्छा थी कि उनके बेटे पढ़- लिखकर उनके व्यापार को मजबूती प्रदान करें ,किंतु सभी व्यक्ति अपनी -अपनी किस्मत साथ लेकर आते हैं ।विधि के विधान को कौन टाल सकता है। लक्ष्मी चंचला होती है, और दोनों बेटे अस्थिर व चंचल स्वभाव के थे । कौशल ,सेठ जी का बड़ा बेटा था । सुशीला उसका पक्ष लेकर हमेशा लड़ने को तैयार रहती। अतः कौशल ने बिना विद्यालय में 1 दिन उपस्थित हुए कक्षा 5 तक की परीक्षा पास कर ली, उसको कहने सुनने वाला कोई नहीं था। आखिर, सेठ जी ने ग्राम की एक सुंदर कन्या से कौशल का विवाह तय कर दिया। विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। कन्या भी अशिक्षित थी, किंतु, घर के कामकाज में कुशल थी । उसने अपने व्यवहार कुशलता से सुशीला का ह्रदय जीत लिया। अब सेठ जी ने कौशल के लिए गोदरेज की एजेंसी ले ली थी। कौशल अत्यंत लापरवाह किस्म का लड़का था। उसे अपने पिता की बिल्कुल परवाह नहीं थी। उसकी नजर केवल सेठ जी के पैसों पर थी। कौशल ने एक बड़ा गोदरेज का शोरूम खोला और धूमधाम से उसका उद्घाटन सेठ जी से कराया। सेठ जी आशा कर रहे थे कि, शायद अब कौशल अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा। कौशल ने अधिक शीघ्र धन कमाने की इच्छा से अलमारी अपने घनिष्ठ मित्रों के घर उधार पर पहुंचा दी। पैसे होने पर धीरे-धीरे वे वापस कर देंगे, लेकिन कौशल ,व्यापार के खेल में अनाड़ी साबित हुआ। मित्रों ने अलमारियां रख ली और उधार के पैसे चुकाने के नाम पर टरकाना शुरू कर दिया। प्रथम बार वह व्यवहार कुशलता में फेल हुआ था।
दुकान का सारा पैसा डूब गया। सेठ जी ने किसी तरह सारा कर्ज चुकता कर दिया, लेकिन घर में रोज पिता -पुत्र में कलह होने लगी ।सेठजी की महत्वाकांक्षी योजना धराशाई हो गई थी ।इसका उन्हें अत्यंत खेद था ।सेठ जी और उनकी धर्मपत्नी सुशीला में रोज नोकझोंक होने लगी ।
सेठ जी कहते -सुशीला सब तुम्हारा किया धरा है ,तुम्हारे लाड- प्यार ने हमारे पुत्रों का भविष्य बर्बाद कर दिया। कौशल से कुछ कहो तो , करता कुछ है ।मंदिर जाने कहो, तो मस्जिद जाता है। पूरब दिशा में जाने कहो तो पश्चिम में भ्रमण करता है। सब बेटे मेरा कहा, अनसुना करते हैं ।
सुशीला दुखी होकर कहती -सब भाग्य का खेल है ,मैंने संस्कारों में कोई कमी नहीं रखी, किंतु पता नहीं ये बच्चे किस पर गये। आपने बिजनेस के कारण बच्चों पर शुरू से ध्यान नहीं दिया। पिता का मार्गदर्शन पुत्र का संस्कार बनाता है। संपत्ति के जुगाड़ में हमारे बच्चों का भविष्य खराब हो गया।
सेठ भरत लाल जी कहते- घर में धन-संपत्ति नौकर -चाकर सब हैं ,सारी सुविधाएं हैं ।अच्छे-अच्छे विद्यालय हैं किंतु वे पढ़ना चाहते, तो पढ़ कर योग्य बन सकते थे, किंतु तुम्हारे लाड प्यार ने उन्हें विलासी बना दिया। सुशीला और सेठ जी के मध्य रोज कहासुनी होती ।बड़ी बहू घर के दरवाजे पर कान लगाए सब सुनती। और मन मसोसकर रह जाती। उसे उसकी पति की बुराई जरा भी अच्छी नहीं लगती। उसका कहना था कि, सेठ जी और सासु मां के बाद सब उन्हीं भाइयों का ही तो है ,आखिर विवाद से क्या फायदा। शोभा कहती जो हुआ सो हुआ।अब सेठ जी को समझौता कर लेना चाहिये।लड़के अपनी चालचलन कहने सुनने से छोड़ने वाले नहीं ।बहू का यह अपना दृष्टिकोण था ।किंतु इससे किसी का भला होने वाला नहीं था। समय बीतने लगा ,शोभा ने एक पुत्र को जन्म दिया। पौत्र के जन्म के अवसर पर सेठ जी ने खुशी से फूले नहीं समाये। खूब धूमधाम से उत्सव किया। रस्में पूरी की गई। कौशल भी बहुत खुश था। किंतु ,कौशल की बेरोजगारी सेठ जी को खटकती थी। अब उसकी संतान का पालन- पोषण उनके हिस्से में आ गया था ।
सेठ जी ने कौशल को अपने साथ मुनीम की जगह पर रख लिया ।जिससे व्यापार में कुछ हिस्सा बटा सके। कौशल की नियत साफ नहीं थी। उसका मन व्यापार की उन्नति में नही होकर तिजोरी पर था। रात -दिन तिजोरी में रखे रूपयों के बारे में सोचता । बाबू जी इतने पैसों का क्या करेंगे ।ना खुद खाते हैं ना खाने देते हैं। आखिर एक दिन उसने तिजोरी की चाबी चुरा कर ढेर सारा धन चुरा लिया। बाबू जी ने जब हिसाब पूछा तो गोलमाल जवाब देकर नुकसान का बहाना बना दिया, और उसकी भरपाई उन्हीं से करने को कहा। इसे कहते हैं चोरी और सीनाजोरी।
बाबूजी अचकचा गए ।आखिर उन्होंने कच्चे पापड़ नहीं बेले थे ।उन्हें जब अन्य कर्मचारियों के माध्यम से सच का पता चला ,तो वे सन्न रह गये। उन्होंने कौशल को बहुत डांटा ,और उस चुराए धन के बारे में पूछा। कौशल ने कबूलते हुए बेशर्मी से कहा सब खर्च हो गए। सेठ का मुंह खुला का खुला रह गया ।सुशीला को अपने पुत्र के इस व्यवहार से बड़ा सदमा लगा ।
कौशल का पुत्र अब दो वर्ष का हो गया था। उसका नाम किरण रखा गया।