भरत की व्यथा
आ जाओ मेरे राम भैया,
बहुत याद आती रोती मैया,
सूनी राहे, सूनी हैं अयोध्या,
रूठ गई हैं सुख की छाया,
कैसे रहेगा भैया भरत तुम बिन,
बरस समान बीतता एक एक दिन,
हुआ क्या अपराध जो कर गए अनाथ,
मुझे क्यो नही ले गए भैया अपने साथ,
क्या कहेगा अब यह जगत,
कितना स्वार्थी हैं यह भरत,
माँ ने मांग लिया कैसा वर,
छीन गया उनका भी वर,
आपके बिन कैसे निकलेंगे चौदह बरस,
नयनो से बह रही नदियाँ मन रहा तरस,
किसे सुनाए भरत अपनी व्यथा,
अपनो की हैं यह अमर कथा,
।।।जेपीएल।।।