भय
वह दिन रात किताबों में खोया रहता है …भविष्य के चक्कर में उसने इन किताबों को अपनी जीवन रेखा बना रखी है…. क्योंकि उसे भय है अपने सुखद भविष्य का……!
वह जी तोड़ खेतों में मेहनत करता है …
उसके लिए त्यौहार, उत्सव सब आम दिनों की तरह ही है…. क्योंकि उसे भय है अपनी बेटी के हाथ पीले करने का…..!
वह सुबह जल्दी उठ जाती है और चली जाती है..
इन गंदी गलियों में गंदे सूअरों के बीच बासी नालों से अपशिष्ट इकट्ठा करती है ….
क्योंकि उसे भय है अपना पेट भरने का ..
उस छोटे से मासूम बच्चे की शिक्षा का…..!!
वह छोड़ने जाती है अपनी बड़ी बेटी को कोचिंग क्लासेज में….
स्कूल में….
क्योंकि उसे डर है समाज के जानवर रूपी मनुष्य से…..
वह निकल पड़े हैं पैदल तीर्थ यात्रा पर….
चंद रुपए , कुछ कपड़े व थोड़े से अनाज के साथ…..
क्योंकि उन्हें भय है अपने कर्मों का
उन्हें भय है उसका जो अटल है – मृत्यु
…..!!
वो खेलने की उम्र में बयाहा दिया जाता है…
वह पढ़ने लिखने की उम्र में अनजान हाथों में सौंप दी जाती है…. क्योंकि उनके अपनों को भय है समाज के तानों का…. बुनियादी तर्क हीन बातों का ….!!
वह अपना घर परिवार छोड़ देता है…
और चला जाता है प्रदेश मजदूरी पर….
क्योंकि उसे भय है अपने परिवार का ….
मासूम नौनिहाल का…..
अपनी अर्धांगिनी की ख्वाहिशें पूरी करने का…..
– लक्ष्य ✍️