भय और मास्क मुक्त भारत
कर्म निकृष्ट तो किये हैं हमने,
जो मुँह छुपाये बैठे हैं ।
एक छोटे से मास्क से हम ,
अपनी जान बचा रहे हैं।
दुबके छुपके भटक रहे हैं,
हम अपनी चार दिवारी में ।
कोई तड़फा भूख प्यास से ,
कोई कोरोना बिमारी में ।
एक अदृश्य विषाणु न जाने ,
कितने चराग बुझा गया ।
कितने बच्चे बूढों को ये ,
पल भर में रुला गया ।
हो गई हमसे जो भी गलती,
हे प्रभु अब माफ करो ।
मेरे भारतवर्ष को अब तुम ,
भय और मास्क से मुक्त करो … ?
©® – अमित नैथाणी ‘मिट्ठू’