भयातुर मन
मैं हँस नहीं सकता
भयभीत हूँ हँसी के दैत्यपना से.।
मैं रो नहीं सकता
सरक्षित हूँ जबतक नहीं रोया।
हँसा तो
छीन लेगा दैत्य
जाग्रत स्वप्न की
मेरी खुशियाँ।
रोया तो
अस्तित्व ही
कर देंगे तार–तार मेरा
ऊँचाईयों पर चढ़े लोग।
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मैं हँस नहीं सकता
भयभीत हूँ हँसी के दैत्यपना से.।
मैं रो नहीं सकता
सरक्षित हूँ जबतक नहीं रोया।
हँसा तो
छीन लेगा दैत्य
जाग्रत स्वप्न की
मेरी खुशियाँ।
रोया तो
अस्तित्व ही
कर देंगे तार–तार मेरा
ऊँचाईयों पर चढ़े लोग।
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