भटक गई मैं एक जंगल में
भटक गई मैं
एक घने जंगल में तो
क्या हुआ
डरने की क्या बात है
जीवन में कभी एक सुनहरा पल
ऐसा भी आयेगा कि
इस भयावह जगह से
बाहर निकलने में कामयाब हो
जाऊंगी या फिर
यहीं रह जाऊंगी
कुछ खाने पीने को मिल गया
जंगल के जानवरों से
दोस्ताना हो गया
रहने को कोई ठिकाना मिल गया
तो जीवित रह पाऊंगी
ऐसा नहीं हुआ गर संभव तो
शायद यहीं इधर उधर
भटकती हुई
घुट घुट कर
तड़प तड़प कर
मर जाऊंगी
मर भी जाऊं तो क्या हुआ
उससे पहले थोड़ा जी तो लूं
मौत तो एक दिन आनी है
थोड़ा पहले या
बाद में
जिंदगी रहते पर
हर समय मौत से क्या घबराना।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001