*भटका राही*
दिनांक १० जुलाई २०२१ रात 9 .४६ पर
सृजन कर्ता -डॉ अरुण कुमार शास्त्री –
भटका राही
आस लिए निकला था घर से
राह गया हुँ भूल
पेट पीठ से चिपक रहा है
तेज लग रही धूप
रोजी रोटी ने मुझको तो
दर दर है भट्काया
काम मिला न कोई अभी तक
प्रभु ये कैसी माया
देख देख संसार की रौनक
आँख मेरी चुन्धियाई
फूटी दमडी पास नही है
तिस पर ये महंगाई
डोलत डोलत साँझ हुइ अब
किस दर जाऊँ रे
कौन सुनेगा अरज बाबरे
पानी पी सो जाऊँ
आस लिए निकला था घर से
राह गया हुँ भूल
पेट पीठ से चिपक रहा है
तेज लग रही धूप