भजन
गंगा ज्ञान की बहा रही सत्गुरु मात,
नहाओ संतो मल मल कै।
संत महात्मा चल के आ रहे दूरो दूर से।
कलकत्ता पटना चेन्नई, कोई बंगलूर से।
तेरे दर्शन को चले हैं संग सात,
कोई पैदल कोई साईकिल से।। १।।
गंगा ज्ञान की ———-
नहाओ संतो ———-
रेल मेल बस टैम्पो से, कोई हवाई जहाज से आया।
कई जन्मो का सफर आज यहां ज्ञान से हुआसफाया
सेवादारों ने बिताई दिन रात।
ना वाकिफ किसी हलचल से।। २।।
गंगा ज्ञान की———-
नहाओ संतो ———–
दानी दाता ज्ञानी ज्ञाता एक से बढकर एक
डाल दुपट्टा गले मे आये प्रचारक एकअनेक
हंसा वरगी है जिनकी जात।
मात दई छल बल कै।।३।।
गंगा ज्ञान की———–
नहाओ संतो ————
संत समागम मे मिलती है चरण धूल सुखदायी।
सेवा मे तल्लीनहै देखो मां बेटी ननद भौजाई।
चरणामृत मे अनोखी है बात।
सिहं पियो पल पल मे।
गंगा ज्ञान की ————-
नहाओ संतो —————