भजन
कभी बने मुरलीधर और कभी बने घनश्याम तुम
अपनी महिमा तुम ही जानो क्या-क्या रखते नाम तुम
मान तोड़ने इंद्र का तुम
गिरधर बन के आये थे,
जीत गोपियों के दिल को
मनमोहन कहलाए थे….
हे कमलनयन हे नंदनंदन
तुम गोविंदा गोपाल हो,
हे दयानिधि हे कामसांतक
तुम पापियों के काल हो….
तुम दीनदयाल और मेरी रूह के हो आराम तुम…
अपनी महिमा तुम ही जानो क्या-क्या रखते नाम तुम..
हे अपराजित हे चतुर्भुज
हे आदिदेव तुमको नमन,
हे कमलनाथ हे जगन्नाथ
निस दिन तेरा ही भजन…
हे केशव कान्हा मदन मुरारी
मेरी भी तुम सुध लेना,
हे तारणहार मेरी नैया को
मुक्ति-पथ पर तुम खेना….
कभी बने लीलाधर तो कभी पुरुषोत्तम श्री राम तुम..
अपनी महिमा तुम ही जानो क्या-क्या रखते नाम तुम..
मेरे विष को अमृत करने
मोहन जल्दी आना तुम,
ज़हर भरे इन रिश्तों में
बन शालिग्राम समाना तुम..
तेरी नगरिया आ पहुँचे हैं
पीताम्बर तन पर डाले,
दया करो हे माधव अब तो
हटा दो तृष्णा के जाले….
मुझे मिटा दो और पहुँचा दो अपने पावन धाम तुम..
अपनी महिमा तुम ही जानो क्या-क्या रखते नाम तुम..
सुरेखा कादियान ‘सृजना’