भगवान रुप ब्लैक-होल.
मंदबुद्धि/तर्कहीन/असहाय/दीनहीन/निर्धन/कमजोर.
मार्ग है भक्ति,
साधन:-
कल्पना/थाली/मूर्ति/पूजा/आराधना/उपासना
साधक यानि भक्त उपर्लिखित चीज़ें को उपलब्ध हो.
बात थोड़ी विरोधाभासी लगती है.
एक ऐसा आयोजन जिसमें सामग्री की आवश्यकता
स्पष्ट जग जाहिर है.
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बाधक:-
भक्त एक तथाकथित ईश्वर को तो जैसे तैसे मत सुझाव देकर जिंदा रखता है, लेकिन संसार का विरोध जारी रखता है.
जबकि खुद को ही उसे समर्पित कर देता है.
उसकी रचना को अस्वीकार वा बारंबार शिकायतें .
न प्रकृति वा अस्तित्व को जान पाता है.
न ही मन की संरचना वा गतिविधि प्रक्रिया पर उसका कोई ध्यान जाता है.
निष्कर्ष:-
निष्कर्ष यह निकलकर आता है.
धोबी का कुत्ता घर का न घाट का.
वह अंतस्तल पर खोखला/विचलित/नकारात्मक/राग/द्वेष/ईर्ष्या आदि सभी मानसिक विकारों से घिर जाता है.
जागरण:-
जागरूकता बिन समझ/विवेक/निर्णय/तर्क-वितर्क
मानसिक झटपटाहट नहीं मिटती.
मोक्ष/मुक्ति/स्वर्ग आदि का प्रलोभन.
उसे अंधकार मे ले जाते है.
और वह तीनों काल में दुखी रहता है.
पर कुत्ते वाली हड्डी नहीं छोड़ता.
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सृष्टि को किसी से खतरा नहीं,
बस विक्षिप्त आदमी इसका कारक बन सकता है.
वह अपनी व्यवस्थाओं को स्थापित करना जानती है.
उसे जाने बिन न तथाकथित भगवान.
ना ही उसके भक्त कुछ कर सकते.
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होमवर्क:-
करना क्या है.
तमसो मा ज्योतिर्गमय.
मनन/मंथन/विचार
कौन ले जायेगा.
कैसे ले जायेगा.
क्या इसके लिए आयोजन आवश्यक है.
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वरन् भगवान रुप एक ब्लैक-होल है.
सबकुछ लील जायेगा.
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस.
चालू रहेगा …..