भगवान चित्रगुप्त
भगवान चित्रगुप्त
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ब्रह्मा के काया का,तुम आकार हो;
तुम ही तो , ‘यम’के सलाहकार हो;
हर जीवन-मरण के, रचनाकार हो;
हे ‘चित्रगुप्त’,तेरी जय जयकार हो;
तुम ही हो,एकमात्र लेखक जग के;
लेखा-जोखा , रखते हो तुम सबके;
तेरे ‘कलम’ की शक्ति से, जग चले;
तेरे लिखे पुस्तिका से ही, सब चले;
तेरे बिना,भगवान यम हैं कुछ नहीं;
तुम ही दिखाए, उनको रास्ता सही;
तेरी सलाह से ही वो भी जाए कहीं;
सबके कर्मों के , रखे तू खाता-बही;
तू ही, कायस्थ कुलदीपक परमेश्वर;
तेरे विचार से ही चलते , सारे ईश्वर;
हे न्यायप्रिय,तेरी कलम अकाट्य है;
बारह पुत्र तेरे , मानवों में ‘विराट’ है;
हे ‘करुणासागर’ , सबके रक्षक तुम;
हर ‘कायस्थ’ तो हैं, ‘वंशज’ जब तेरे;
फिर क्यों उन्हें , कोई भी संकट घेरे;
सब चित्रांशों पर निज कृपा बनाओ;
सबके ही कष्ट तुम, अब दूर भगाओ;
सब चित्रांश, चित्रगुप्ताय नमः गाओ।
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स्वरचित सह मौलिक;
……✍️पंकज कर्ण
…………कटिहार।।