भगवान और भक्त : कलियुगी संवाद
भक्त और भगवान,
कलियुगी संवाद
जन्माष्टमी पर भक्ति भाव कुछ ऐसा हो गया
कि कान्हा से साक्षात्कार हो गया
मैं नतमस्तक हो गया
कान्हा के चरणों में लोट गया
कान्हा ने कहा : वत्स खड़े हो जाओ
सुबह से भूखा हूँ, कुछ खिलवाओ
लोग छप्पन व्यंजन लेकर आ रहे हैं
सामने से दिखा रहे हैं,
मैं कुछ खा पाऊँ, इससे पहले ही वापस ले जा रहे हैं
ऊपर से ठंडे जल से नहलाए जा रहे हैं.
मैंने कहा प्रभु आदेश दीजिए क्या खाएंगे
आप ही का दिया है, मेरे तो भाग्य सँवर जाएंगे
कान्हा बोले, मैं तो माखन खाता हूँ
मैं बोला मैं तो सिर्फ लगाता हूँ
प्रभु जमाना बदल गया आप न बदले
माखन अब मटकी में नहीं लटकता
अमूल की टिकिया में आता है
आजकल माखन कोई नहीं खाता है
ये तो बस लगाने के काम आता है
तभी उधर से जा रही थी एक गैया
झट से दौड़ पड़े कन्हैया
बोले गोपाल, दिन भर गाय चराऊँगा
भरपेट दूध भी पाऊँगा
मैंने दौड़ कर पकड़ा, क्या करते हो नंदलाल, लेने के देने पड़ जाएंगे
कोई गोरक्षक मिल गया तो जान के लाले पड़ जाएंगे
सोच में पड़ गए गोपाल, अच्छा तो जमुना की तरफ ही चलता हूँ
वहाँ गोपियाँ नहाती मिलेंगी
उनके कपड़े उठा लूंगा
माखन मिलने पर ही वापस दूंगा
मैं बोला बड़े भोले हो नंदलाल
गोपियाँ अब यमुना में नहीं नहातीं हैं
वहाँ तो भैंसें पगुराती हैं
गोपियाँ तो वाटर पार्क में रेन डांस करती हैं
और कपड़े तुम क्या चुराओगे
कपड़े हैं या नहीं हैं यही सोचते रह जाओगे
उल्टे ईव टीजिंग में धरे जाओगे
कन्हैया बोले तो मैं क्या करूँ
क्या ऐसे ही भूखा मरूँ
मैं बोला लड्डू गोपाल उचित यही है कि आप मंदिर में ही प्रस्थान करो
भक्त भी इम्तहान लेते हैं प्रतीक्षा करो
लेकिन याद रहे, जरा भी न हिलना डुलना,
पत्थर से बने रहना
और बुत से खड़े रहना
भक्त परदा गिराएंगे
थालियां सजाएंगे
बस तभी चुपके से थोड़ा थोड़ा खा लेना
अपनी भूख मिटा लेना
लोग जान भी जाएंगे, तो बलिहारी हो जाएंगे, जयकारे लगायेंगे,
ये कलियुग है प्रभो, कलियुग में तो आप सिर्फ मंदिर में ही प्रतिष्ठा पाएंगे.
लेकिन ध्यान रखना,
मूरत ही बने रहना
जरा भी आप हरकत में आओगे
मंदिर से भी निकाले जाओगे
इसीलिये भगवान मंदिर में ही जमे हैं
पत्थर से, मूरत बने खड़े हैं
और हम,
भगवान तो पत्थर के हैं
कह कह कर
खुद को ही छलते रहते हैं
और बिडंबना देखिए कि
छलिया भगवान को कहते हैं.
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद