भगवन्नाम का भरोसा
भगवन्नाम का भरोसा
————
हम आप मान्यताओं परम्पराओं को
मानने वाले लोग हैं,
फिर समस्त रोगों के नाश करने वाली औषधि
भगवन्नाम का उच्चारण करने में
भला हमें दिक्कत क्या है?
जैसे जल अग्नि को शांत करता है
अंधकार कैसा भी घना हो
सूर्य उसे नष्ट करने में सक्षम है।
काम, क्रोध, मद, लोभ के नाश के लिए
भगवन्नाम उच्चारण ही पूर्ण समर्थ है।
बार बार भगवन्नाम का नाम उच्चारण करने भर से
हमारी जिह्वा पाक साफ पावन हो जाती है,
मन को प्रसन्नता और इंद्रियों को सुख की प्राप्ति होती है,
रोग शोक संताप से मुक्ति मिल जाती है।
गीता के अनुसार कहें तो
मन से, बेमन से, हंसकर या क्रोध से
अथवा हंसी मजाक में भी
यदि भगवन्नाम भर लिया जाय
तो मनुष्य के सारे पाप मिट जाते हैं।
रामचरितमानस में भी कहा गया है कि
’भाव कुभाव अनख आलसहुँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहुँ।।’
राम राम कहि जै जमुहाहीं ।
तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं ।।
भगवान का नाम लेकर जो जम्हाई भी लेता है, उसके समस्त पाप भस्मीभूत हो जाते हैं–
श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद में भी कृष्ण अर्जुन संवाद प्रसंग मिलता है
अर्जुन उवाच !
किं नु नाम सहस्त्राणि जपते च पुन: पुन: ।
यानि नामानि दिव्यानि तानि चाचक्ष्व केशव ।।
एक बार भगवान कृष्ण से अर्जुन ने पूछ लिया
केशव! आपके हजार नामों का जप
मनुष्य भला करता ही क्यों हैं,
जबकि हजार नामों का जप
तो बड़ा श्रम साध्य कार्य है,
आप मानवों की सुविधा सहजता के लिए
अपना वो दिव्य नाम बताइए,
जो आपके एक हजार नामों के
बराबर ही फलदायी हो।
तब श्रीकृष्ण ने अपने अट्ठाइस नाम बताए
श्रीभगवानुवाच
मत्स्यं कूर्मं वराहं च वामनं च जनार्दनम् ।
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं माधवं मधुसूदनम् ।।
पद्मनाभं सहस्त्राक्षं वनमालिं हलायुधम् ।
गोवर्धनं हृषीकेशं वैकुण्ठं पुरुषोत्तमम् ।।
विश्वरूपं वासुदेवं रामं नारायणं हरिम् ।
दामोदरं श्रीधरं च वेदांगं गरुणध्वजम् ।।
अनन्तं कृष्णगोपालं जपतोनास्ति पातकम् ।
गवां कोटिप्रदानस्य अश्वमेधशतस्य च ।।
भगवान श्रीकृष्ण के 28 दिव्य नाम (हिन्दी में)
मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, जनार्दन,
गोविन्द, पुण्डरीकाक्ष, माधव, मधुसूदन,
पद्मनाभ, सहस्त्राक्ष, वनमाली, श्रीधर हलायुध,
गोवर्धन, हृषीकेश, वैकुण्ठ, पुरुषोत्तम, विश्वरूप,
वेदांग, वासुदेव, हरि, दामोदर, कृष्णगोपाल
गरुड़ध्वज, अनन्त, हलायुध, नारायण
इन अट्ठाइस का जप करने भर से
मानव शरीर पापरहित हो जाता है
एक करोड़ गौ-दान, एक सौ अश्वमेध-यज्ञ
और एक हजार कन्यादान का फल
जप करने वाला मानव पाता है,
अमावस्या, पूर्णिमा और एकादशी तिथि
और हर रोज प्रात:, मध्याह्न व सायंकाल
जो इन नामों का जप करता है
वो मनुष्य सारे दोषों पापों से मुक्त हो जाता है।
मानव मात्र के लिए भगवन्नाम स्मरण ही
बस एकमात्र, तप, धर्म, साधन है
मानव जीवन का एक क्षण भी
विश्वास करने के लायक नहीं है
इसकी हर सांस का ही मोल है
जिसका सार्थक उपयोग हमें करना चाहिए,
जब तक सांस चले तब तक भगवन्नाम का जप,
स्मरण, ध्यान लगातार करते रहना चाहिए
भगवन्नाम पर भरोसा रखना चाहिए।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश