भक्त वत्सल भगवान-नादान इंसान!!
श्रृष्टि के ये तीन देव,
ब्रह्मा विष्णु महादेव,
भक्त वत्सल है यह त्रिमूर्ति,
अद्भुत है इनकी श्रृष्टि;
एक जन्म दाता, एक हैं पालक,
एक मुक्ति के दाता जीवन सघांरक!
तीनों की यह विविधता,
अनेकता में है एकता,
तीनों एक दूसरे के पूरक,
तीनों एक दूसरे के पूजक!
तीनों भक्ति में रहते लीन,
तीनों भक्ति के अधीन,
तीनों देते हैं वरदान,
करने को जन का कल्याण!
हम फितरत से भरे हुए हैं,
भस्मासुर हम बने हुए हैं,
ना किसी की करते परवाह,
ना हमें प्रभु का स्मरण रहा!
करते रहते हैं उत्पात,
अपनों पर ही करते प्रतिघात,
बस अपनी सत्ता के मद में चूर,
परहित से हो रहे हैं दूर!
हम अपने अहंकार में मदमस्त,
मान्यताओं को करते पथ भ्रष्ट,,
भूल गए अपने दायित्व,
मिला है जीवन सबसे श्रेष्ठ!
प्रकृति का करके दोहन,
प्राणियों का करके शोषण,
चल पड़े हैं विपरीत राह पर,
नहीं पसीजते किसी की आह पर!
तब अब जब ब्रह्मा ने जीवन दिया,
नारायण ने पाल- पोष कर योग्य किया,
फिर भी हम ना संभले,
अब हो रहे हैं शिव के हवाले!
शिव तो हैं शमशान वासी,
महाकाल, महा अविनाशी,
जटा शंकर, भभूत धारी,
मृत्यु दाता, त्रिनेत्र धारी!
अब उसकी शरण में करते पुकार,
करुणा करो हे करुणावतार,
हर लो यह प्राण,हे प्राण नाथ,
कर दो हम पर कृपा हे विश्वनाथ!
अपने पुरुषार्थ से जो करते परोपकार,
प्रकृति से लेकर जीव-जंतुओं से प्यार,
बदल कर प्रवृति, बना दी यह नियति,
पर त्रिदेवों की प्रक्रिया तो सदैव एक ही है रहती,
जन्म देना, पाल-पोस कर बड़ा है करना,
बाकी तो सब कुछ हमारा ही है किया धरा,
तो फिर अब शिव को भी,है क्या करना भला ।