भक्त मार्ग और ज्ञान मार्ग
भक्तमार्ग और ज्ञानमार्ग में सबसे बड़ा अंतर यह है कि ज्ञानमार्गी के लिए बुद्धि की आवश्यकता है और भक्तिमार्गी के लिए केवल अनुभव की क्योंकि उसके लिए सब कुछ ईश्वर ही करता है। किंतु समस्या यहाँ खड़ी होती है कि भक्तिमार्गी अच्छे हुए कार्य को ईश्वर से जोड़ देता है और बुरे कार्य को उसके कर्मों से अर्थात सोच से जोड़ देता है, किंतु यह समस्या नहीं बल्कि हल है, जिसका अर्थ है कि अगर व्यक्ति की सोच ईश्वर मार्गी या भक्तिमार्गी होती तो वह बुरे कार्य ही नहीं करता जिससे उसे बुरा परिणाम ना मिलता, उसने ईश्वर की भक्ति से हटकर जो कुछ कर्म किया वह लालच और स्वार्थ विषय से वशिभूत होकर किया, इसलिए उसे बुरा परिणाम मिला। अगर परम् भक्त को कोई दैहिक/दैविक/भौतिक बीमारी या ताप हो जाए तो उस अवस्था में भक्त कहता है कि यह उसके पूर्व जन्मों या प्रारब्ध में किए बुरे कर्मों का फल है जो इस जन्म में भोगकर मैं अपना प्रारब्ध समाप्त कर रहा हूँ। जबकि ज्ञानमार्गी प्रत्येक कार्य का एक भौतिक कारण तलाश करता है, जैसे कैंसर का कारण सिगरेट इत्यादि, भोजन का कारण किसान का अनाज, घर का कारण मिट्टी से बनी ईंट और पैसा, जन्म का कारण संभोग, बीमारी का कारण कोई बैक्टीरिया या वायरस, दिन रात का कारण पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना, सूर्य के ताप का कारण हीलियम हाइड्रोजन गैस, ब्रह्मांड का कारण बिग बैंग संकल्पना, पदार्थ का कारण अणु परमाणु, इनका कारण इलेक्ट्रान प्रोटोन न्यूट्रॉन, इनका कारण क्वांटम कण इत्यादि और जब कोई कारण नहीं मिलता तो संयोग। इस प्रकार ज्ञान मार्गी हर बार अपने प्रयोग से एक नया कारण तलाश कर ईश्वर को स्रष्टा होने के मार्ग से हटाता रहता है, किंतु भक्तिमार्गी हर कण में ईश्वर को स्थापित कर हर कार्य का कारण ही ईश्वर को बता कर निवृत्त हो जाता है क्योंकि ज्ञान का मूल कारण भी तो ईश्वर ही है। मगर ज्ञान मार्ग भौतिक जगत के लिए परम आवश्यक है जिस प्रकार अध्यात्म जगत के लिए भक्तमार्ग आवश्यक है क्योंकि ज्ञान मार्ग भी तो ईश्वर ने ही बनाया है मनुष्यों में बुद्धि देकर, जो अन्य जीवों में नहीं है। किंतु यह सत्य है कि बगैर बुद्धि के ना तो भक्ति हो सकती ना ज्ञान की बातें क्योंकि जानवर में विचारात्मक बुद्धि नहीं है इसलिए वो भक्ति नहीं करते बल्कि इंद्रिय जरूरतों से परिचालित होते हैं। व्यान मार्ग ईश्वर के संसार को इंसानों के रहने योग्य और सुविधायोग्य बनाता है।
प्रशांत सोलंकी