भक्त और भगवान का अटूट रिश्ता
भक्त प्रह्लाद की भक्ति
उसे श्री हरि की समीप ले आई ।
अटूट विश्वास की यह श्रृंखला थी ,
जिसे हिरण्य कश्यपु की शक्ति तोड़ न पाई ।
जलती आग पर बिठाया नन्हें बालक को ,
बहन होलिका संग उसे लाज न आई ।
अपने ही रक्त का जो शत्रु बना ,
दुष्ट पिता ने ऐसी नृशंसता दिखाई।
किए उसने अनेकों प्रयास परंतु ,
अहंकारी ने सदा मुंह की खाई ।
स्वयं को भगवान बताने का हठ था,
उस हठ पर श्री हरि ने बिजली गिराई ।
भक्त प्रह्लाद की बांह हर परिस्थिति में ,
उन्होंने थामी और भक्त की जान बचाई ।
मिटाया उसके शत्रु को और दीनबंधु ने ,
सदा प्रभुता निभाई ।
तभी तो श्री हरि की महिमा अपरंपार है भाई !