भक्ति-शक्ति
धर्म-कर्म में आस्था,भक्ति-शक्ति आधार।
अर्जित करता वह मनुज, जिसमें हो संस्कार।। १
पोषित करता भक्ति को, उत्तम शुद्ध विचार।
मिलन आत्म परमात्म से, तब होता साकार।।२
भक्ति किसी भी वस्तु का, करे नहीं संहार।
सभी इन्द्रियों से परे,है इसका संसार।।३
भक्ति-शक्ति जड़ चेतना, चिंतन का आधार।
मानव उर में प्रेम का,जो करता संचार।। ४
भक्ति-शक्ति संजीवनी,यही मोक्ष का द्वार।
योग साधना से करें, अंतस का उपचार।।५
भक्ति-शक्ति अद्भुत बड़ी,करें जगत उद्धार।
कण-कण में माया भरी,चकित सकल संसार।। ६
भक्ति-शक्ति रस युक्त है,श्रद्धा है श्रृंगार।
इष्ट देव के साथ ही,होतें एकाकार।। ७
भक्ति-शक्ति का बीज है, उगे ह्दय के द्वार।
परम प्रेम परमात्मा,जिसे करें स्वीकार।। ८
भक्ति-शक्ति से ही मिले,श्रेष्ठ आत्म आहार।
दोष रहित हो आत्मा, मन में शुद्ध विचार। । ९
भक्ति-शक्ति से ही मनुज, होता भव से पार।
कामी क्रोधी लालची,फँसा रहा मझधार।। १०
प्रेम भावना से जुड़ी,हो श्रद्धा विश्वास।
भोग्य वस्तुओं से परे,भक्ति-शक्ति का वास।। ११
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली