भक्ति का रुप।
मनुष्य को अपनी भक्ति कैसी करना चाहिए? मनुष्य को समस्त जीवों में परमात्मा के दर्शन करना चाहिए। किसी भी जीव पर दया करना चाहिए। उसके साथ कभी भी, दुर्व्यवहार न करें।यह भी एक भक्ति होती है। और किसी भी जीव को अपने कर्म,वचन, व्यवहार से दुख न पहुचाये। मनुष्य के हृदय में हमेशा दया का वास होना चाहिए। ईश्वर की भक्ति केवल पूजा,या नाम जपने से नही होती है। मनुष्य को हमेशा अपने कर्मों को साधना से संपन्न करना चाहिए। यही सबसे बड़ी भक्ति है।आज जो स्थिति निर्मित हो गई है। उसमें दया का स्थान नहीं है। इसलिए हम भक्त, और भगवान से बहुत दूर चले गए हैं। किसी भी जीव का दिल दुखाना सबसे बड़ा पाप माना गया है। और ऐसे प्राणी का जो आपके शरण में आया है,उसका कभी भी दिल न दुखाएं।हम आज तक भक्ति के भेद को नही समझ पाए है। इसलिए हम ईश्वर से दूर होते चले गए।हम मनुष्य के जीवन को केवल मनोरंजन की तरह जीते हैं!