भक्ति और प्यार
“कल अचानक से आया,
एक दोस्त सपने में।
मुख से लगा था,
राम-राम जपने में।।”
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“मैंने पूछा क्या हुआ,
क्यूँ अपनाया ये जोग।
थक गए जीवन से,
या लगा है प्रेम रोग।।”
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“किसी के द्वारा वह,
शायद उल्लू बना था।
क्यूँकि उसका मासूम चेहरा,
गीली मिट्टी से सना था।।”
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“उसने कहा,”मैंनू यार,
बिजली नाल प्यार हुआ।”
फिर उसने गलती से,
बिजली का नंगा तार छुआ।।”
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“एकदम गुल हो गई,
उसके दिमाग की बत्ती।
हालत ऐसी हुई मानों,
चीड़ की सूखी पत्ती।।”
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“फिर दूजी बार उसे,
लड़की नाल प्यार हुआ।
और उसने हौले से,
लड़की के कँधे पर छुआ।।”
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“मारा करारा तमाचा,
लड़की ने पीछे पलटकर।
नीचे गिरकर सन गया,
गीली मिट्टी में रगड़कर।।”
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“तबसे उसने इस,
रोचक तथ्य को जाना।
बिजली और लड़की को,
हमेशा एक समान माना।।”
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“पर यथार्थ की जिंदगी में,
गलत कार्य से यार डरो।
दुश्मन के साथ भी,
दिल से तुम प्यार करो।।”
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—–संदीप बागड़ी “विनम्र”