भइया सच्चाई हऽ सबके भभाले
जनता डेराइलि हऽ, बोले ना चाले।
मुसवा के रोजो बिलरिया चबाले।
हँसे ले देखऽ बिलरिया ठठा के।
सभे सपाइल हऽ बियली में जा के।
बढल अमिरन गरिबन के खाई।
रोटी दुलुम भइलि छुटल कमाई।
जाति आ धरम में सबके बझाले।
मुसवा के रोजो बिलरिया चबाले।
जनता के सत्ता निकम्मा बनावे।
घरे-घरे राशन आ तेल बँटवावे।
माँगे जे काम धाम करेला चोना।
उनपर चलावेले रास्ट्रवादी टोना।
गिरल मनवता ना केहू सम्हाले।
मुसवा के रोजो बिलरिया चबाले।
फुदुकल हऽ तनिको जे गरमी देखा के।
सीबीआई आइलि हऽ पोंछिटा उठाके।
सबकर दवाई बा जे मुँह खोली।
कुर्सी पऽ अँगुरी उठा के जे बोली।
भइया सच्चाई हऽ सबके भभाले।
मुसवा के रोजो बिलरिया चबाले।