भंयकर अंधड़
***भंयकर अंधड़ ****
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आ रहा है भंयकर अंधड़
नेस्तनाबूद कर देगा जड़
जोर जोर से ये हिलाएगा
शायद संभल नहीं पाएगा
शक्ति और गति है पुरजोर
छाया है अंधेरा चारों ओर
काली घटा भी है घनघोर
ना चलेगा किसी का जोर
संग ले जाएगा बहा कर
मिलेगा कहीं पनाह पर
जो जड़ से होंगे मजबूत
हिल नहीं पाएंगे एक सूत
जो हैं ढ़ीले जैसे शहतूत
नहीं रहेगा तनिक सबूत
यही प्रकृति का नियम है
रहेगा वही जिसमें दम है
शाखाएँ, तने टूट जाएंगे
पलभर में बिखर जाएंगे
करो एकत्रित सर्व शक्ति
काम नहीं आएगी भक्ति
वो सहेगा प्रकृति प्रकोप
जिसमें ना हो अहं,कोप
सुखविन्द्र है पाठ पढ़ाये
ईश आगे ना टिक पाये
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)