भंडारा
13• भंडारा
फरवरी महीने में शनिवार का दिन, लगभग 11 बजे ।शहर में मदन बाबू का घर ।मदन बाबू धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।गाँव से कुछ समय पहले ही शहर वाले मकान पर बेटे के पास आए थे।बड़ा-सा मकान, बाग-बगीचे ।बेटे की दो-दो गाड़ियाँ गेट के अंदर ही खड़ी थीं ।छुट्टी का दिन था।बेटा किसी काम से पैदल ही चौराहे तक गया था ।
अचानक घंटी बजी ।बाहर कोई स्कूटर सवार आया था ।बहू ने देखा ।बताई कोई चंदा मांगने आया है ।वैसे भी याचक मुहल्ले के इस मकान पर कुछ आस लगाए रुकते जरूर थे और उन्हें कुछ न कुछ मिलता भी जरूर था।
मदन बाबू बाहर निकले।कोई संभ्रांत दिखने वाला, अच्छे कपड़ों में लगभग 30-35 का एक सांवले रंग का युवक स्कूटर खड़ी किए गेट पर सड़क के किनारे रुका हुआ था ।अभी भी सिर से हेलमेट नहीं उतारा था,जैसे आफिस जाने की जल्दी हो,हालाँकि शनिवार को अधिकांश दफ्तरों में छुट्टी रहती है ।मदन बाबू को देखते ही उसने रटा-रटाया सा अपनी बात बताई कि वह पास के मुहल्ले में रहता है और किसी पूजा समिति का सदस्य है ।मुहल्ले के बड़े मंदिर में बसंत पंचमी के दिन हर साल भंडारा होना बताया जिसके लिए कुछ योगदान चाहिए था। उसने दुख भी व्यक्त किया कि सरकार ने जागरण पर रोक लगाया हुआ है, तभी से बसंत पंचमी के दिन हर साल भंडारे का आयोजन होता है ।
मदन बाबू ऐसे किसी शुभ कार्य के लिए मना करने वाले न थे।फिर भी तसल्ली के लिए उन्होंने पूछ ही लिया, “कोई रसीद-वसीद है क्या?”युवक ने बताया कि जल्दी में रसीद तो भूल गया हूँ, लेकिन आयोजन मंडल से हूँ, रजिस्टर में नाम दर्ज कर लूंगा, आप नाम बता दें ।मदन बाबू को कहीं रजिस्टर भी दिखा नहीं, सोचा डिक्की में रखा होगा ।पता नहीं याचक की बातों से कितना आत्मविश्वास छलक रहा था कि उन्होंने उसे कुछ देने का मन बना लिया और कहा कि गेट पर नाम-पता लिखा है, देख कर लिख लीजिये ।अभी वे रूपये नहीं निकाले थे और इसी बीच युवक क़लम ढूंढने की कवायद करने लगा।
ऊपर-नीचे पाकेट टटोलते उसने कहा शायद क़लम भी कहीं भूल आया हूँ, आप दे दें जो देना हो, मैं आपका नाम बाद में लिख लूंगा ।अब मदन बाबू का बचा-खुचा विश्वास भी खत्म हो गया और मन शंकित हो चला ।याचक को देने के इरादे से जो वे 501 रूपये पाकेट में रखे थे ,उसे निकालना उचित नहीं समझे और फोन में पुलिस का नंबर मिलाने लगे ।युवक जो अब भी हेलमेट पहने हुए था,तुरंत चौकन्ना हो गया और अभी मदन बाबू उसके स्कूटर का नंबर पढने की कोशिश कर ही रहे थे तबतक बिजली की फूर्ती से उसने किक लगाया और ऐसे भागा जैसे दुपहिया वाले राह चलती महिलाओं के गले से चेन खींचने के बाद सिर पर पैर रखकर भागते हैं। अब वृद्ध मदन बाबू को पक्का यकीन हो गया कि युवक एक ठग था।
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—राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित,06/03/2021•