भँवर
अज्ञात उलझनों से भरी है जिन्दगी
आरोह अवरोह की सीढ़ी है जिन्दगी
कभी प्रगति के पथ खोले जिन्दगी
कभी पतन के भँवर ढकेले जिन्दगी
आरोह की ओर उन्मुख होते सपने
सखे साथ सब होते है साथ अपने
अवरोही गिनतियाँ होती शुरु जब
पास न हो कोई कटे अकेले जिन्दगी
साधन सम्पन्न होते है जब घर द्वार
ख्याव देखे , शहर करे चाँद के पार
जीवन हो विपन्नता से भरा जन का
दिखने लगी है तब झमेले जिन्दगी