भँवरा बन बउराइल साजन
रहिया उनकर देखत-देखत भर गइल अँखिया लोर।
बटिया जोहत हियरा लचके जैसे बाँस मकोर।।
भइल सजनिया चंदा मुखड़ा
जैसे आँख चकोर,
छटपट-छटपट जियरा तड़पे,
चैन मिले ना थोड़।
ए सखी, साजन! मोर कन्हाई! गइल विदेशिया ओर।
बटिया जोहत हियरा लचके जैसे बाँस मकोर।।
बैरी मनवा सुने न बतिया,
साजन मोर न भेजे पतिया,
माखनचोर भइल बचपन में,
अब हिय चोर भइल रंगरसिया।
ए सखी, साजन! हिया के राजन! जिया चुराएल मोर।
बटिया जोहत हियरा लचके जैसे बाँस मकोर।।
बनके भँवरा मोहे सतावे,
गुनगुन करके जिया कँपावे ,
रहिया रोक के आँख दिखावे,
घूम-घूम के मोहे नचावे।
ए सखी, भँवरा तिरछी नजर से, ताके हमरी ओर।
बटिया जोहत हियरा लचके जैसे बाँस मकोर।।