“भँडारे मेँ मिलन” हास्य रचना
बाद मुद्दत के मिली, आज वो भँडारे मेँ,
इक अहद बीत गया, उसके बस सहारे मेँ।
सहर होती कहाँ थी, बिन उसे देखे हरगिज़,
हाय वो दिन, मिला करते थे जब चौबारे मेँ।
वज़न बढ़ा था कुछ चाँदी भी ज़ुल्फ़ पर आई,
पर वही बात थी, दिलबर के उस इशारे मेँ।
थक गया था मैं बाल्टी को भी ढोते-ढोते,
सारी सब्ज़ी सिमट जाती थी, इक निवाले मेँ।
शोर था मच रहा हर सिम्त मुसलसल अब तो,
रिज़र्वेशन भी घुस गया क्या धरम-खाते मेँ ?
मनचले कुछ बचाव मेँ अजब तरह आए,
पुराना केस है, दो छाप इनके बारे मेँ।
है पसोपेश, समेटूँ भी किस तरह “आशा”,
रायता फैल चुका था जो अब, अहाते मेँ..!
अहद # एक लम्बा अन्तराल, a pretty long gap, interval etc
सिम्त # तरफ़, ओर, आदि direction,towards etc
मुसलसल # लगातार, continuously
पसोपेश # दुविधा, dilemma