बढ़ो कि माँ ने तुम्हें बुलाया है !
माँ पे गिद्धों का पड़ आया साया है
चोरों ने माँ को बहुत ही रुलाया है,
कुछ खुद खाया, कुछ अज़ीज़ों को भी खिलाया है,
कुछ चोरों को देश से बाहर भी भगाया है,
मिल कर माँ को दुखिया बनाया है,
बांट-बांट कर खुद को बनिया बनाया है.
अब माँ रोती है चीत्कार करे,
अपने सूत से कैसे प्रतिकार करे,
हम ने जिसे जननी माना था,
जिस के लिए,सपूतों ने,
बढ़-चढ़ कर अपना जान गवाया था.
अब चोरों ने बेचारी उसे बनाया है,
नोच -चोथ कर मैली कलुषित बनाया है.
कहीं मान का हरण किया, तो
कहीं तेज़ाब से नहलाया है,
अंग-अंग को बाज़ार तक लाया है.
अब तुम पे भार सब हो आया है
बढ़ो कि माँ ने तुम्हें बुलाया है
अपने हिस्से का मान तुम से अब मंगवाया है।
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12-05-2019
⇝सिद्धार्थ⇜