बढ़ती जनसंख्या–एक चिंता…
आबादी नित बढ़ रही, चिंता की है बात ।
रोजगार मिलता नहीं, बिगड़ रहें हालात ।।
शहर शहर भीड़ बढ़ती, कम पड़ते आवास ।
भेड़ बकरी सम रहते, चुभती मन में फाँस ।।
जंगल कटते जा रहें, पशु पक्षी भयभीत ।
प्राकृति बनकर आपदा, गाती हैं नित गीत ।।
कारखाने विष उगले, लोग बनते शिकार ।
तड़प तड़प कर रोग से, जीवन जाते हार ।।
सीमित परिवार सबका, एकल हो संतान ।
लालन पालन खूब हो, सदा रहे मुस्कान ।।
——जेपी लववंशी, हरदा, म.प्र.