बड़ो की छत्रछाया
बड़ो की छत्रछाया
एक दिन अचानक मेरी तबियत बहुत खराब हो गई,घर पर सब परेशान और दौड़धूप करने लगे।जब मुझे कुछ होता मम्मी- पापा, दादा- दादी, काका -काकी भैया -भाभी, सब के सब परेशान हो जाते कोई कुछ कहता कोई थोड़ी डांट लगाता कि इधर उधर मत घूमो लोगो की नज़र जल्दी लग जाती है,और मैं उनके इस सवाल पर तपाक से बोल पड़ती थी कि नजर वजर कुछ नही होती फिर दादी मुझे समझाती नही बिटिया नजर तो लोगो की लगती है तुम्हारी नटखटी बातें सबको मोह लेती है और कब लोगो की नज़र तुम्हे लग जाती हैं तुम्हे पता नही चलता और तुम तो बहुत ही भोली और प्यारी हो। और दादी ने मेरी नजर उतार दी थोड़े ही समय बाद में बिल्कुल ठीक हो गई।पर मम्मी को तो नजर वजर की कोई बात पर विश्वाश नही होता था।वो तो सीधे थोड़ा कुछ होता तो डॉक्टर के पास ले जाती और इलाज करवाती ।दादी ने मम्मी को कई बार समझाया की बच्चो पर कभी कभी नजर का भी असर हो जाता है,।तब जाकर मम्मी को भी विश्वास हो गया कि लोगो की बुरी नजर का भी लोगो पर घातक असर होता है, और बड़े लोग सयाने होते है दुनियादारी की समझ हमसे ज्यादा हमारे बड़े बूढो में होती है।,उनकी हमेशा छोटी छोटी बातों की गांठ हमे बांध लेना चाहिए । आज मेरी दादी परलोक सिधार चले गईं लेकिन मम्मी को दादी की बताई बात हमेशा याद रहती है।घर के किसी भी बच्चे की तबियत खराब होती तो मम्मी पहले नजर जरूर उतारती है। फिर डॉक्टर को दिखाने ले जाती।
एक बात हमेशा याद रखना अपने बड़े बूढो की बात हमेशा याद रखने योग्य होती है।और उनकी छत्रछाया में ही रहने का सौभाग्य प्राप्त करना चाहिए।उनका आशीष कभी खाली और जाया नही जाता।हमेशा फलता फूलता है घर परिवार में खुशियां व्याप्त रहती है।
गायत्री सोनु जैन मन्दसौर????????