बड़ी नफ़रतें है दिलों में आजकल !!
बड़ी नफ़रतें है दिलों में आजकल !!
मग़र दिलचस्प वाकया कुछ और ही है ।
जो असल परेशानी का सबब है ;
उसे कोई नहीं जानता ?
हैरत में हूँ ; कसम से……;
वो मुझे मैं उसे नहीं पहचानता ?
जाने किन गर्द के सायों में,भटक रहे नौजवाँ
साज़िश से बेखबर ;ख़ुद अपनी जुबाँ
नहीं जानता
आता है दुश्मन अक्सर;मददगारों के भेष में जो हमदर्द दिखता है ;ये उनका मंसूबा
नहीं जानता
बँट गए वायज यहाँ ;मज़हब के नाम पर
अब तो ख़ुद ख़ुदा भी ;अपना माकूल घर. नहीं जानता
शिद्दत से घर किये बैठी ;है परदेश की चाहत
वहाँ बेगैरती से जीने का ;अभी हुनर
नहीं जानता
जो सोचते है ;रहमत बरसेगी नई वादियों में
वो दिल के जख्म भरने का ;मरहम
नहीं जानता
घर के फ़साद घर ही में रहें ;तो अच्छा है “साहिल”
सुबह का भुला शाम को घर आ जाये उसे मैं ;भुला नहीं मानता
S K soni?
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