बड़ा तेज मन का मृग भागे
बड़ा तेज मन का मृग भागे
बिना रुके बस आगे आगे
नींदों के उपवन में डोले
सपने लेकर भोले भोले
दुनिया ये तब तक ही उसकी
जब तक नहीं नींद से जागे
बड़ा तेज मन का मृग भागे
नाजुक तो ये दर्पण जैसे
बिन आवाज टूटता वैसे
यही जिताता यही हराता
बाँधे यही मोह के धागे
बड़ा तेज मन का मृग भागे
मन ये रूप बदलता रहता
बात नहीं पर अपनी कहता
दुख से लड़ लड़ कर खुशियों से
हम सबका ही जीवन पागे
बड़ा तेज मन का मृग भागे
02-11-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद