ब्राह्मण
जिस भी ब्राह्मण में, रावण अब तक जिंदा है।
परशुराम, वशिष्ठ, नारद, भृगु उससे शर्मिंदा हैं।।
ब्राह्मण की साधुता स्वयं विष्णु से।
बन गोपियां वो करते प्रेम कृष्ण से।।
नारद बन वो करते भजन विष्णु का।
भरत हुए भाई त्रेता में स्वयं राम का।।
भरत, गोपियां, नारद ये सब साधू है।
भृगुवंशी साधु, विष्णु प्रेम अगाधु हैं।।
राम स्वयं विष्णु, है भरत जी ब्राह्मण।
राम भजन में किए समर्पित तनमन।।
त्याग प्रेम भक्ति से, रहे ये सदा प्रथम।
नहीं ये रखता माया पाने खोने का गम।।
जो भी ब्राह्मण कर रहा, कलयुग में अपराध।
कुलद्रोही तो हो रहा, कर रावण सा अपराध।।
जय हिंद
जय सीताराम