ब्राउनी (पिटबुल डॉग) की पीड़ा
तुम जाने मेरे बारे में क्या सोचते होंगे ,
यकीनन मुझे खूंखार हत्यारा समझते होंगे ।
मेरी जाति की जीव तो वफादारी निभाते है ,
अपनी जान गंवाकर मालिक को बचाते है ।
मगर मैने अपनी ही मालकिन की जान ली ,
जो मुझसे बहुत प्यार करती थी उसकी जान ली !
अपने हाथों से मुझे खाना खिलाती थी ,
कितना मनुहार ,कितना दुलार करती थी ।
मगर मैने यह क्या किया और क्यों किया ?
कौन सा शैतान सवार था मुझपर जो पाप किया ।
लेकिन मैं तो इंसान नहीं हूं जो जानूं पाप पुण्य ,
आज कल तो इंसान भी नहीं मानते पाप पुण्य।
मैं नादान ,मूर्ख प्राणी हूं और स्वभाव में क्रोधी ,
मैं आम श्वान नहीं हूं मैं हूं थोड़ा सा जिद्दी भी ।
मेरी भूल इतनी सी थी मैं कॉल बेल से चिढ़ती थी,
आवाज सुनते ही पागलों की तरह भागती थी ।
क्या कहूं कैसी वोह मनहूस दुखदाई घड़ी थी ,
जब मालकिन मेरी आक्रामकता का शिकार हुई थी ।
पागल सी हो गईं थी मैं मुझे कुछ भी होश नहीं ,
भूल गई थी मैं यह मेरी मां है मेरी दुश्मन तो नहीं ।
जब आया होश तो खुद को पिंजरे में पाया ,
मालिक ने खुद मुझे पकड़ कर पिंजरे में पहुंचाया।
अब मैं बहुत शांत हो चुकी हूं ,एकदम गुमसुम ,
गैरों और डॉक्टर की निगरानी में अपने आप में गुम ।
आज मैने सबकुछ खो दिया घर और अपनों को भी ,
वोह प्यार भरा सरंक्षण और लाड़ दुलार भी ।
मेरा मालिक मेरी शक्ल देखने को राजी नहीं अब उसका गुस्सा जायज है नफरत करेगा मुझसे अब ।
मगर इसमें उसकी भी तो गलती है वोह भूल गया,
मैं तो घरेलू श्वान नहीं हूं फिर मुझे क्यों वोह लाया?
मेरी प्रजाति के श्वान खुले वातावरण में रहा करते है ,
बहुत सारा क्रिया कलाप और मांसाहार होते है ।
मैं क्या कहूं इसके घर मैं बिल्कुल खुश नहीं थी ,
मेरी जीवन शैली से इनकी जीवन शैली से मेल खाती नही थी ।
शायद मैं इसी वजह से कुंठित और गुस्सेल रहती थी
मगर मालिक मेरी जरूरतों और पीड़ा को समझ में आती नहीं थी ।
आज जो हुआ इसी का तो परिणाम है ,
कसूर किसी का और मेरा यह अंजाम है ।
मेरी मालकिन जान से गई ,और मैं जीतेजी मर गई,
मेरे मालिक की रुचि मेरा जीवन बरबाद कर गई ।
अब कौन मुझे गोद लेगा,और कौन देगा प्यार ,
खूंखार हत्यारा होने की बदनामी मिली बेशुमार ।
अरे वाह रे मतलबी इंसान !तेरे सितम की हद नहीं ,
खिलौना समझता है तू हमें ,समझता जीव नहीं ।
प्यार दुलार देते है अपनी मर्जी और खुशी से,
और मन भर जाए तो निकाल देते है अपने घर से ।
आज मैं देता हूं ईश्वर को दुहाई और पुकारती हूं ,
अपने इंसाफ के लिए अब तेरा दर खटखटाती हूं ।
मुझसे जो अनजाने में गुनाह हुआ उसके लिए,
मुझे माफ कर ।
मगर मेरे मालिक ने जो मेरा जीवन बरबाद किया ,
इसका इंसाफ कर ।
मैं अब आजीवन कैद मैं पड़ी हई रोता रहती हूं ,
मेरी पुकार हे ईश्वर ! मैं तुझे पुकारती हूं ।