ब्रह्मांड
इतना विशाल ब्रह्मांड
अनेकों आकाशगंगाए
सरसों भर पृथ्वी पर
रत्तीभर मुल्क
अब सोचिये, रत्ती भर
पर हमारी हैसियत
क्या है ?
फिर भी हमें गुमान है।
छल ,दम्भ ,द्वेष , ईर्ष्या
और पांखण्ड लिए
विचरण कर रहा इंसान
दामन में समेटे हुए
इतना गुमान।
दुनिया को मुट्ठी में
कर लेने की चाह
जब फटी तो दीखती
नहीं कोई राह।
जिसे स्वयं
अपने उद्भव का
पता नहीं है
आजीवन खोजी
वृत्ति लिए टहलता है
आज इसे सच, तो उसे
झूठा सिद्ध करता है
कल झूठा सत्य लिए
पुनः घूमता फिरता है।
जानना तो बहुत कुछ
चाहता है
पर कितना जान
पाता है?
ऐसे ही करते करते
अपनी अनंत यात्रा
पर एक दिन चल देता है
दुर्भाग्य से कुछ भी
साथ नहीं ले जाता है
फिर भी मानता नहीं है।
अहंकार को समेटे
अथाह की बिना
थाह लिये
उसकी रुखसती होती है
दुनिया धरी की धरी
रहती है।
जिस जीवन के न आदि
का पता है न अंत का,
पता है तो बस
मृत्यु के अटल सत्य का।
ईमानदारी से सोचो
क्या हैसियत है हमारी
जिसे अपने ही
औकात का पता नहीं
वह दूसरे के औकात को
ललकारता है
फिर अपनी औकात को
समेटे यहाँ से विदा लेता है।
चार दिन रो धो कर
सब काम में
तल्लीन हो जाते है
एक समय के बाद
सब नाम भी लेना भी
बंद कर देते है
अतीत को बिसार
भविष्य को निहारते है।
अस्तु बस
इतना देखना
तुम्हारे न होने से किसे
फर्क पड़ता है,
बस उसी के लिए
निर्मेष जीना मांगता है।
निर्मेष