ब्रज वंदना
🦚
ब्रज वंदना
**********
यहाँ कालिन्दी कल-कल करै सोर रे ,
तट पै नाचैं मगन मोरनी-मोर रे ,
भौतइ पावन है ब्रजभूमि भैया ।
महकै तुलसी रँभावें रे गैया ।।
*
ब्रज की धरती सुपावन मनोहर बड़ी,
जन्म पावै करै जो तपस्या कड़ी,
यहाँ बसें जन जो गिरि के पुजैया,
महकै तुलसी रँभावें रे गैया।(1)
*
ब्यार बहवै इतै तन कूँ सरसाबनी,
गूँजैं रसिया मल्हारें मधुर रागिनी,
है कदम्बन की सीतल रे छैया ।
महकै तुलसी रँभावें रे गैया।।(2)
*
कूक कोयल की सुन ताप मन कौ घटै ,
बुलबुलन की चहक श्राप सुन कै कटै,
डारी बैठी रे सोनी चिरैया ।
महकै तुलसी रँभावें रे गैया।।(3)
*
याइ रज नै कन्हैया की रुनझुन सुनी ,
जन्म राधा नै लैबे यही रज चुनी,
यामैं सोई जसोदा सी मैया ।
महकै तुलसी रँभावें रे गैया।।(4)
***
राधे…राधे…!
🌹
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
🪷🪷🪷