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20 Jan 2021 · 1 min read

ब्रज की चाह

जय प्रेममयी वृषभानुलली।
निधिवृन्द बसी मृदु कुंजकली।।
मन-मंदिर से मधुभाव भरूँ ।
चरणों में अर्पित पुष्प करूँ ।।

मनमोहन से अब प्रीत लगी।
प्रभुदर्शन की अभिलाष जगी।।
ब्रज की धरती पर मोर बनूँ ।
यमुना तट आकर रोज नचूँ ।।

छंद तोटक
सगण ४: ।।s ।।s ।।s ।।s
जगदीश शर्मा सहज

Language: Hindi
1 Like · 4 Comments · 241 Views
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