बौराया बसन्त
फूलि,मुसकाति, खड़ी सरसौँ भले हो खेत,
जौबन कौ भार लगै गेहुँन पै भारी है।
अँबुआ लजात उत बौरन के भार सौँ,
कोयल की कूक सब रागन ते न्यारी है।
अल्हड़ बयार भई सोँधी परागन सोँ,
भँवरन की तान सब गीतन से प्यारी है।
अँगना मा काग बोलि धीरज बँधात मोहि,
हिय की हिलोरन पै मेरौ बस नाहीं है।
काहे तड़पात,अब काहे कौ न आवत पिय,
एक-एक पल मोरे जियरा पै भारी है! .