बौछारें
लघुकथा
बौछारें
रात से पानी बरस रहा था , आज रामकुमार बगीचे में पानी डालने नही गये । बरामदे में शेड के नीचे बैठ कर वह बारिश का आनंद ले रहे थे , तभी उनक पत्नी रमा चाय ले कर आ गयी , सोने में सुहागा हो गया, अब बारिश का मजा दुगना हो गया और चाय का चार गुना ।
तभी उनका चार साल का पोता नन्दू आ गया और गोद में बैठ गया । सच में अब रामकुमार अपने को दुनियाँ का सबसे भाग्यशाली आदमी समझने लगे । तभी अंदर से बहू संगीता की आवाज आई :
” नन्दू कोई काम नहीं है क्या ? चलो होमवर्क पूरा करो सुबह से बाबा की गोद में चढ़ गया अरे उन्हें तो कोई काम है नहीं , वह यह भी नहीं कर सकते कि बाजार से दूध सब्जी ले आये बैठे बैठे खाने की आदत जो पड़ गयी है ।”
रामकुमार धडाम से आसमान से जमीन पर गिर गये थे , दिल को चोट ज्यादा लगी थी । खैर रमा जा चुकी थी इसलिए बेईज्ज़ती थोड़ी
कम लगी ।
रामकुमार कमरे में गये बंडी पहनी जिसमें पैसे थे और झौला ले कर बाजार निकल गये ।
अब संगीता , रमा से उलझ रही थी
” आप से इतना भी नहीं होता कि मैं , आफिस की तैयारी कर रहीं हूँ तो रोटी ही सेंक दे , आप दोनों ही ऐसे रहते हो इस घर में जैसे कोई वास्ता ही न हो ।
रमा रोटी सेंकने लगी और रामकुमार भिन्डी काटने
लगे ।
संगीता और सुनील दोनों ही अच्छी नौकरी करते थे और काम के लिए किसी नौकर को रख सकते थे ,लेकिन रमा और रामकुमार रहते है क्यो सात-आठ हजार खर्च किये जाए ?
अगले दिन फिर बारिश जारी थी , कोई कुछ भी कहे जब तक नन्दू बाबा जी की गोद में न बैठ जाए उसे चैन नहीं मिलता ।
इतवार का दिन था , संगीता और सुनील भी बारिश की वजह से बरामदे बैठे चाय पी थे ।
तभी नन्दू , रामकुमार जी का हाथ पकड़ आया और बाल-सुलभ मन से बोला :
” बाबा जी आप तो रोज बगीचे में पानी डालते है फिर आज क्यो नही डाल रहे ? ”
रामकुमार ने कहा :
” बेटा बारिश में प्रकृति खुद वृक्षों और पौधों को सींचती है , उस समय वह उम्मीद भी नही करते कि कोई उन्हे सींचे और उनकी सेवा करे ।”
रामकुमार अब भावुक हो गये और बोले :
” बेटा जब तक माता पिता के हाथ पैर चलते रहते है वह अपने परिवार और बच्चों के लिए बहुत कुछ करते रहते है , उस समय उन्हें देखभाल की जरूरत नहीं होती , प्रकृति की तरह वह खुद अपनी देखभाल करते हैं लेकिन जब गर्मी में झुलसते है असहाय हो जाते है तब वह पानी के सींचने की उम्मीद करते है ।”
कहते हुए रामकुमार की आँखो में आंसू आ गये ।
नन्दू तो कुछ नहीं समझ पाया लेकिन शायद संगीता और सुनील पर कुछ बौछारें पड़ी हों ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल