#बोल_तुमको_चाहिए_क्या ?
एक गीत (चुनावी मौसम को समर्पित)
#बोल_तुमको_चाहिए_क्या ?
________________________________________
वोट खातिर नोट लेकर हैं खड़े देखो महाशय,
बांटते खैरात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
कर रहे प्रण अब महोदय
है हमारी प्राथमिकता,
नौकरी सबको दिलाने
की पहल करता रहूंगा।
रोजगारों की बहुलता
हो हमारे क्षेत्र में अब,
है प्रतिज्ञा भीष्म जैसी
मैं सदा लडता रहूंगा।
प्राप्त करते हैं विजय जब भूलते सारी प्रतिज्ञा,
छद्म इनकी जात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
वोट खातिर नोट लेकर हैं खड़े देखो महाशय,
बांटते खैरात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
चाटुकारी जो करेगा
है वहीं इनका अधिरथ,
और जन को क्या कहें हम
जड़ सदा यह मानते है।
है जरूरत आप से गर
गर्दभो को बाप कहते,
आप कारण ही नियंता
आप से रण ठानते हैं।
कर्म से खुद की खुदा बन मानते खुद को मसीहा,
बांटते हैं रात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
वोट खातिर नोट लेकर हैं खड़े देखो महाशय,
बांटते खैरात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
बज गई फिर से बिगुल है
देख लो आये महा ठग,
घोल कर मुख में मधुरस
हाथ में मदिरा लिए हैं।
और भी आश्वासनों की
पोटली लेकर विधाता,
आ गये मत पाने को यह
भूल; छल कितना किये हैं।
आपका अधिकार पाकर आपको आँखे दिखाते,
वक्ष पर आघात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
वोट खातिर नोट लेकर हैं खड़े देखो महाशय,
बांटते खैरात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
ये बड़े बहुरूपिये है
और मिथ्या के पुजारी,
रक्त पीने की कला में
भेडियों के बाप हैं ये।
भाग्य अपना ये बनाने
आ गए हैं आपके दर,
किन्तु छल अरु छद्म में हर
राग का आलाप हैं ये।
धर्म की यह आड़ लेकर आ गये सबको रिझाने,
छेड़ते जज़्बात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
वोट खातिर नोट लेकर हैं खड़े देखो महाशय,
बांटते खैरात! कहते बोल तुमको चाहिए क्या?
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार