बोल न अब क्या करूं!
हां! मेरे रग रग में फैली है तू और तेरी यादें,
मेरी जिस्म का हर ज़र्रा जानता है तेरा अहसास,
तेरे हर लफ्ज़ पर मर मिटती है मेरी सांसे,
फिर भी उदासी सी है, क्यों तू नहीं है न पास,
बोल न अब क्या करूं……
तेरी तस्वीर से बातें करते करते रो पड़ता हूं,
सोचता हूं तुझे और उदास हो जाता हूं,
अब नहीं बीत रही ये दिन ये रातें तेरे बिन,
पत्थर हो गई है आंखे तारे गिन गिन,
बोल न अब क्या करूं……
खुद तो आती नहीं, मुझे आने नहीं देती,
फिर अपने सा ही क्यों न भुल्लकड़ बना देती,
कम से कम ये दर्द तो ना होता,
मेरे मरने के दुआएं ही मांग लेती,
बोल न अब क्या करूं……
थक गया हूं मेरी जान पलको पर आंसू छुपाते छुपाते,
फट जायेगी किसी दिन दिल, दिल के दर्द दबाते दबाते,
इतना बुरा तो न था कभी की तुझे याद न आऊं,
कैसे भूल गई फिर ? क्या मुझसे नफरत निभाते निभाते?
बोल न अब क्या करूं…..!!!!!