” बोलती आँखें सदा “
गीत
भेद दिल के खोल देती ,
बोलती आँखें सदा !!
हम जुबां को बंद कर लें ,
अधर को सिल लें भले !
भाव आनन के छिपा लें ,
भले जग को भी छलें !
नयन का गहरा समंदर ,
डोलती आँखे सदा !!
दर्द झेलें या छिपाए ,
कहें चाहे अनकहे !
खुशी को कैसे समेटें ,
गंध जैसी है बहे !
वणिक तोले ज्यों समय को ,
तौलती आँखें सदा !!
नेह नयनों में पले है ,
चाह भी पलती यहाँ !
छवि यहाँ बसती अनूठी ,
प्रतीक्षा छलती यहाँ !
प्रीत का रस पावनी जो ,
घोलती आँखें सदा !!
प्रश्न आँखों में उभरते ,
हल यही करती रही !
झूँठ से परहेज करती ,
सच मगर कहती रही !
है परत मन की घनेरी ,
खोलती आँखें सदा !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )