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12 Feb 2024 · 1 min read

” बोलती आँखें सदा “

गीत

भेद दिल के खोल देती ,
बोलती आँखें सदा !!

हम जुबां को बंद कर लें ,
अधर को सिल लें भले !
भाव आनन के छिपा लें ,
भले जग को भी छलें !
नयन का गहरा समंदर ,
डोलती आँखे सदा !!

दर्द झेलें या छिपाए ,
कहें चाहे अनकहे !
खुशी को कैसे समेटें ,
गंध जैसी है बहे !
वणिक तोले ज्यों समय को ,
तौलती आँखें सदा !!

नेह नयनों में पले है ,
चाह भी पलती यहाँ !
छवि यहाँ बसती अनूठी ,
प्रतीक्षा छलती यहाँ !
प्रीत का रस पावनी जो ,
घोलती आँखें सदा !!

प्रश्न आँखों में उभरते ,
हल यही करती रही !
झूँठ से परहेज करती ,
सच मगर कहती रही !
है परत मन की घनेरी ,
खोलती आँखें सदा !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 184 Views

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