बोये बीज बबूल आम कहाँ से होय🙏
जीवन है अनमोल 🙏
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खेलो कूदो मस्त रहो ??
अभी नहीं तो कभी नहीं
पढ़ोगे लिखोगे होओगे
खराब खेलोगे कूदोगे
एक दिन बनोगे नबाब
पढ़ने वाला घूम निट्ठले
समय निज बर्बाद करता
खाओ पियो दूजे छिन
झूठा खिला जूठन नहीं
दया धर्म का समय नहीं
मतलब से मतलब रखो
औरों से सरोकार नहीं
कहते चलो सुनो नहीं
मन जो चाहे करो वही
रौब दिखा बर्दाश्त नहीं
नतमष्तक छोटे लक्षण
ऊंचा मष्तक बड़े होता
बड़े छोटे का रखो भेद
सीना तान बढ़े चलना
विनम्रता से रहना दूर
उम्र लिहाज जरूरत नहीं
जाति पाति का रहे ज्ञान
अकड़ में पकड़ बना कर
झुको नहीं झुकाना सीखो
दर्प घमण्ड से जीना सीखो
छीन हँसी से हँसना सीखो
ऐसा बीज ज्ञान देता जो
भाव भावना से ग्रसित नव
विकृत संस्कार पनपती बीज
विकसित पाति बबूल गाछ़ी
पर्ण नुकीले कष्टों की डाली
बिखर विस्तृत चुभन जहरीले
कर्म पथ भर देता कांटे से
नव पल्लव भरी नव डाली
भूतल जीवन पथ दर्द चुभन
पक फल जहरीले बन जाते
भावहीन दम्भभरी शान ए
शौकत छनभंगुर जगत में
वक्त बदल देता है सब कुछ
ऐसी अज्ञान भरी शिक्षा का
काल खण्ड दुःख सागर बनता
ऐसे को कहते प्रतिपत जग जन
बोये बीज बबूलआम कहां से होय ।
सत्य इंसानियत नेक विचार
मान सम्मान करूणा दया धर्म
सद्कर्म सद्बुद्धि सद्ज्ञान जो
श्रमपथ का सच्चा राही प्रेरणा
छोड़ दूजे ब्रहाण्ड छिप जातें हैं
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तारकेश्वर प्रसाद तरुण