{{ बोझ }}
मिल कर जाता हैं तो यू जाता हैं वो
जैसे कोई एहसान उतार कर जाता है
मेरे दिल के हर ज़ख्म से वाकिफ़ था वो
तभी तो नमक लगा जाता है
मेरा साथ चलता रहा सफर में
पलट के जो देखा किसी और का हाँथ
थाम चला जाता है
अब तो शोर में भी खामोशी हैं
लगता हैं शायद वो मेरे नाम पुकारता है
आज जब दिदार हुआ तो उसकी खुशी देखी
मुझसे बिछड़ के जैसे कोई बोझ उतर जाता है
आज मेरे दामन में बहुत पत्थर पड़े है
देखा तो पहला पत्थर वही उछाल जाता है
अब तेरी यादों से ही मुनव्वर है ज़िन्दगी मेरी
जो आँखे खोलू हर ख़्वाब बिखर जाता है
हर दिन सोचती हूँ आज कह दु सारे ज़ज़्बात अपने
बस तेरी बेरुखी देख इरादा बदल जाता है
नए महफ़िल के चमक में मशरूफ हो गया वो
के खामोशी से हमारा रिश्ता टूट जाता है
तेरे बिना मेरी परछाई भी अजनबी सी लगती है
लगता हैं एक आईना ही हैं जो मुझे जनता है