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24 Jan 2019 · 1 min read

बोझ

आज के बच्चे दब गए बोझ तले।
किताबों के बस्ते हो गए बड़े।।
पिछला सलेबस वो भूल चले।
आगे का सलेबस दिमाग पर चढ़े।।
मंजिल ढूंढते ढूंढते राहों मे खड़े।
तेरा मेरा करते करते इक दूजे से लड़े।।
हम जैसा बचपन कहीं नजर न पढ़ें।।
चारों तरफ गुमनामी के अंधेरे अड़े।
कहीं रोशनी का साया भी न पड़े।।
जहां देखो नशे का घेर चढ़े।
आज हर तरफ हेरा फेरी ही मिले।।
आओ मिल कर करें इस बोझ को परे।
तो ही हो पाएंगे हमारे बच्चे हरे भरे।।

कृति भाटिया।।

Language: Hindi
1 Like · 589 Views
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