बोझ बनकर जिए कैसे
बोझ बनकर कोई जिए कैसे,
जिंदगी भर ये जहर पिए कैसे।
भला ये दिल डरा सहमा सा क्यों है,
किसी ने इतने ज़ख्म दिए कैसे।
जब बोलते थे वो तो प्यार टपकता था बातों से,
उनके ये होंठ सीए कैसे।
मारना ही चाहा ए दोस्त सबने हमको,
न पूछ कि हम जी लिए कैसे।
जब उसको लौटकर ही नहीं आना है,
फिर कोई रास्ता निकलेगा बोलिए कैसे।