बोझ जो सिर पर उतार दो
बोझ जो भी सिर पर उतार दो
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बोझ जो भी सिर पर उतार दो,
हँसकर बाकी के पल गुजार दो।
भार हम ने ढोया कभी नही,
गम हुए हों भारी तो निसार दो।
बोलते मुख से ठीक ही नहीं,
आदतें अपनी कुछ सुधार दो।
शौक जीने का तुम रखो सदा,
आफतों को झट से निहार दो।
रंज ए गम मन से निकाल दो,
तुम हसीं लम्हें बे-शुमार दो।
छू सके दुख तुम्हे कहीं नहीं,
हाल ए दिल अपना सँवार दो।
रोज़ मनसीरत कह रहा यही,
जिंदगी को मधुरिम फुहार दो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)