बॉस की पत्नी की पुस्तक की समीक्षा (हास्य व्यंग्य)
बॉस की पत्नी की पुस्तक की समीक्षा (हास्य व्यंग्य)
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अखबार के दफ्तर में मेरा जिम्मा या तो रिपोर्ट लिखने का रहता था या इंटरव्यू और यदा-कदा पुस्तक समीक्षाओं का होता था। एक बार मेरे पास एक कविता संग्रह आया और मुझे बताया गया कि तुम्हें इसकी समीक्षा लिखनी है । खुद बॉस ने बुलाया और कहा कि मैंने सुना है कि दफ्तर में तुम सबसे अच्छी समीक्षा लिखते हो । पहले तो मैं बहुत खुश हुआ कि चलो मेरी तारीफ हो रही है लेकिन यह तो बाद में पता चला कि बकरा कटने वाला है , जब बॉस ने बताया कि यह कविता संग्रह मेरी पत्नी का लिखा हुआ है और इसकी बहुत अच्छी समीक्षा आनी चाहिए।
मैं जानता था कि कविता संग्रह कूड़ा होगा, बकवास होगा और इस असार संसार में जो कुछ भी सार- रहित है, वह सब कुछ बॉस की पत्नी की पुस्तक में होगा। खैर मैं पुस्तक को सर माथे पर लगा कर बॉस के दफ्तर से उठा और मेरे माथे पर परेशानी के चिन्ह दिख रहे थे । सबसे पहले तो मैं यह विचार करने लगा कि दफ्तर में आखिर किसने मुझ से जन्म- जन्मांतरों की दुश्मनी निकाली है, जो मुझे बॉस की पत्नी की पुस्तक की समीक्षा का कार्य दिया गया।
खैर जो भी हो ,मैं घर आया ।पुस्तक पढ़ी और जैसा कि मैं समझता था पुस्तक में प्रशंसा करने योग्य कुछ भी नहीं था। आप समझ सकते हैं बॉस की पत्नी की पुस्तक की समीक्षा करनी है । पुस्तक कूड़ा है और उसे हम कूड़ा बता भी नहीं सकते ।आखिर दफ्तर में नौकरी जो करनी है ।अगले दिन मुंह दिखाना है ।अब क्या किया जाए… सांचे से तो जग नहीं और झूठे मिले न राम ….पुरानी कहावत सामने आ गई। इधर खाई उधर कुँआ.. अजीब मुश्किल.। हमने अपना पुराना नुस्खा निकाला और पुस्तक समीक्षा लिखी। आप भी आनंद लीजिए :-
“उभरती हुई कवयित्री का यह काव्य संकलन इस दृष्टि से प्रशंसा के योग्य है कि कवयित्री में अपार संभावनाएं भविष्य के लिए जान पड़ती हैं। कविता लिखने का जो उत्साह कवयित्री में है ,उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रहा जा सकता । जितनी अधिक संख्या में, जितने कम समय में कविताओं के लिए कवयित्री ने काम किया है, वह अपने आप में एक मिसाल है । कम ही लोग इतनी कम आयु में कविताएं लिख पाते हैं। उसको प्रकाशित करके जन-जन तक पहुंचाने का काम जो कवयित्री ने अपने हाथ में ले लिया है ,वह प्रशंसा के योग्य है । कम ही लोग कविताएं लिखने में रुचि रखते हैं और उनमें से थोड़े ही लोग अपने धन को खर्च करके उन कविताओं को पुस्तक रूप में प्रकाशित करा पाते हैं ।अपने व्यस्त जीवन में घर- गृहस्थी तथा परिवार से समय निकाल कर कविताओं को एक बार लिख कर कवयित्री ने समाज पर जो उपकार किया है , वह प्रशंसा के योग्य है । मैं जानता हूं कि उन कविताओं को एक बार लिखने के बाद दोबारा उन पर दृष्टिपात करने के लिए कवयित्री को समय कहां मिला होगा ? लेकिन व्यस्तताओं के बाद भी कविताओं को लगातार लिखते रहना और उनका चाहे जैसा भी संकलन आते रहना, यह एक बड़े ही आत्मबल की बात होती है । कविता संग्रह में अच्छाइयां और गुण स्थान-स्थान पर बिखरे हुए हैं , सहृदय व्यक्ति को वह ढूंढने से अवश्य ही मिल जाएंगे। यह तो व्यक्ति की दृष्टि पर निर्भर करता है कि वह उनमें से अच्छे भाव ग्रहण करे , उनकी प्रशंसा करे या फिर केवल लय पर ही अपनी दृष्टि को टिका दे और मात्राओं के दोष गिनता रहे । मैं एक बार पुनः कवयित्री को उनके कविता संग्रह के प्रकाशन पर बधाई देता हूं । मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।”
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लेखक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451