बॉटल
बचपन में पापा जब पाइप के द्वारा कुएं से पानी बहुत दूर ले जाकर सिंचाई करते हुएं देखता तो मुझे पाइप में से पानी की धार को आते देख बहुत ही अच्छा और सुखद अनुभूति होती थी ।
घर के पीछे मम्मी ने कुछ सब्जियां उगाई थी तो मुझे एक तरकीब सूझी की जो बीमारी में डॉक्टर साहब मरीजों को बोटल चढ़ाते है ना और चडाके उसे बाहर फेंक देते है । तो मैं उसकी नली को इकट्ठा करके घर की सब्जियों को पानी सप्लाई करूंगा खेल का खेल भी हो जायेगा और सब्जियों के पौधों को पानी भी मिल जायेगा ।
घर के पड़ोस में मंशाराम काका को पास ही के बंगाली डॉक्टर साहब जब एन एस और ग्लूकोज की बॉटल चढ़ा रहे थे तो मैं बस उसके खाली होने का बेसब्री से इंतजार करने लगा । क्योंकि वो बॉटल जब खाली हो जायेगा और डॉक्टर साहब उसे या तो कही घर की मंगरी या ढालया में खोंस देंगे या अपने साथ ले जाकर गांव के बाहर किसी जगह फेंक देंगे । इसी ख्याल में डूबा मैं बस बॉटल के खाली होने का इंतजार ही करता रहा । तब जाके बॉटल खतम हुई और डॉक्टर साहब ने उस खाली बॉटल और नली को काका के घर के आगे के ढालये में खोंस दिया और उनसे कहा की याद से इसे कही फेंक देना ।
मैने धीरे से उस बॉटल में से नली निकाली और बड़े से पानी के कुंडे में नली के एक छोर को डुबाकर और एक छोर को मुंह से पानी खींचकर पौधों को पानी देने लगा तो इसमें मुझे और आनंद आने लगा । तभी कुछ समय बाद मम्मी ने मुझे ऐसा करते हुए देख लिया उन्होंने मुझे डांटते हुए कहा की अभी के अभी ये नली फेंको पता नही किसे डॉक्टर साहब ने बॉटल चढ़ाया और तू इससे मुंह से पानी खींच रहा है ।
मैने नादानी में कह दिया कि मम्मी मुझे कुछ नहीं। पता मुझे बॉटल की नली ही खेत खेत खेलने के लिए चाहिए । मुझे अपनी सब्जी की बाड़ी को इससे ही सिंचाई करना है । उस समय मामी मम्मी ने तो कह दिया की बेटा इससे मत खेल मैं तुम्हारे लिए कुछ और ला दूंगी । ये कहके चली गई । मैने सोचा कि इस नली से दूसरो को बॉटल लगाई गई है इसलिए मम्मी मना कर रही होगी । मन ही मन सोचने लगा कि काश मेरे घर में भी किसी को ऐसे ही दवाई वाली बॉटल लगती तो खतम होने के बाद मैं उससे खेलता फिर मम्मी कुछ नही बोलती ।
आज पत्नी को बॉटल लगते हुए देखा तो ये वाकया मुझे एकाएक याद आ गया । की वो बचपन भी कितना अबूझ, मासूम, निर्दोष था । की बॉटल क्यों लगाया जाता है ये भी नहीं पता था ।