बैसारीमे
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□डा0 जय नारायण गिरि” इन्दु ”
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(लॅक डाउनक कालमे लिखल गेल ई कविता)
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लॅक डाउनमे बन्द भेल छी कहू अपन की हाल विशेष
धंधा अपन छोड़ि छी वैसल आइ काल्हि बैसारीमे
सदिखन हाथ सिरिंज रहै छल गरदनिमे लटकल आला
खुरपी डोल उठा नेने छी आइ काल्हि बैसारीमे
कखनहु फेसबुक चला लैत छी, कखनहु टीभी देखै छी
धीया पूता संग दिन कटै छी आइ काल्हि बैसारीमे
कखनहु पोती देह जँतै अछि कखनहु छिनै कलम किताब
बिस्कुट लेल अड़ै अछि कखनहु आइ काल्हि बैसारीमे
कखनहु शांत रहै अछि दूनू खनो करैत अछि बदमाशी
दादा केर सिनेह भेटल छन्हि आइ काल्हि बैसारीमे
रातिमे कखनहु कविता लिखी, निश्चित देखी रामायण
करी बात हम सऽर कुटुम्बसँ आइ काल्हि बैसारीमे
खोजि खोजि कऽ फोन डायरीसँ नम्बर हम बहार करी
कुशलक्षेम पूछी संगीसँ आइ काल्हि बैसारीमे
कारनी देखि ठेकान रहै नै कखन करी भोजन जलपान दूनू पुतोहु चूल्हि छथि फूकने आइ काल्हि बैसारीमे
कखनहु ओ तरूआ तरैत छथि खन ओ खीर बनाबै छथि
कखनहु चटनी चोखा बनवथि आइ काल्हि बैसारीमे
आग्रह भोजनकें करथिन ओ वेरि वेरि, हम खाइ कतेक
पत्नी चाह पियावथि सदिखन आइ काल्हि बैसारीमे
बाड़ी तामी कोड़ी सदिखन करी पटौनी मोटर सँ
लहलह करै करैलक लत्ती आइ काल्हि बैसारीमे
भांटा घेरा पटुआ गेन्हरी बड़बट्टी कुन्दरी ओ परोड़
श्रमक फलसँ सभ हरियर अछि आइ काल्हि बैसारीमे
कटहर आममे फल लुबधल अछि करी पटौनी हप्ता बाद
केरा गाछ हरित डगडग अछि आइ काल्हि बैसारीमे
दिनमे दू वेरि ब्रश करै छी सांझ सवेर करी स्नान
नौ वेरि हाथ धोइ साबुनसँ आइ काल्हि बैसारीमे
बैसारीमे हिलल मिलल छी अपन सभ परिवारक संग
सुख दुःख बांटि रहल छी संग संग आइ काल्हि बैसारीमे
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