बैठ गए
वो मुझे आजमा के बैठ गए।
हम भी नज़रें झुका के बैठ गए।।
हौंसला था हमारा यह समझो।
खार दुश्मन भी खा के बैठ गए।।
वक्ते रुखसत कब आसान रहा।
चाय वो भी बना के बैठ गए।।
मैंने पूछा कि प्यार है मुझसे।
दांत अपने चबा के बैठ गए।।
यादों की जब कभी बरसात हुई।
धूप में सब नहा के बैठ गए।
भीड़ सचमुच है क्या जमाने में।
आप दिल में समा के बैठ गए।।
अपनी तन्हाइयों से घबराकर।
बेशरम घर पे आ के बैठ गए।।
विजय बेशर्म